कृषि क्षेत्र के विकास में नाबार्ड की भूमिका (भोपाल संभाग के विषेष संदर्भ में) | Original Article
सारांष
भारतीय अर्थव्यवस्था में ग्रामीण विकास का प्रमुख स्थान है, भारत की लगभग 65 से 70 प्रतिषत आबादी ग्रामीण है। ग्रामीण क्षेत्रों के निवासी अपना जीवन कृषि व उसके उत्पन्न उत्पाद व उससे जुड़े उद्योग से ही चलाते है। यदि तुलना की जाए तो ग्रामीण क्षेत्रो व शहरी क्षेत्रो के जीवन यापन मे काफी अंतर है। ग्रामीण क्षेत्रो मे सुविधाओं का अभाव होता है। ग्रामीण क्षेत्रो से सरकारी सेवाएॅ, अस्पताल, स्कूल व अन्य आवष्यक सेवाओं का अभाव व दूरी दिखाई देती है। आज के समय ग्रामीण विकास एक राष्ट्रीय आवष्क्ता हेै भारत व उसके विकास के लिए यह एक महत्वपूर्ण लक्ष्य की तरह है। ग्रामीण विकास के लिए ग्रामीण लोगों के आर्थिक व सामाजिक स्तर को ऊॅंचा उठाना परम आवष्यक है। इसी कारण भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापनार 12 जुलाई 1982 मे की गई। जिसका उद्देष्य कृषि क्षेत्र को पुनवित्त सहायता प्रदान कर ग्रामीण विकास को बढ़ाना व गरीबी को कम करना है। जिसमे ऋण और अन्य सुविधाएॅ प्रदान करने के लिए भारत सरकार की विकास नीतियों के अंतर्गत विभिन्न ग्रामीण स्कीम को सफल बनाना मुख्य उद्देष्य है। यह एक एकीकृत संगठन है, इसका कार्य ग्रामीण विकास के लिए आवष्यक ऋण की सभी प्रकार की आवष्यकताओं को समझना है। अतः इस शोध पत्र के माध्यम से ग्रामीण व कृषि विकास में नाबार्ड की भूमिका का अध्ययन किया गया है। जिसमे संबंधित उद्देष्यों के साथ ही संबंधित विभिन्न गतिविधियों व क्रियाओं का अध्ययन शामिल है। नाबार्ड प्रबंधन उनके संगठन निर्माण, धन के श्रोत, बैंको की भूमिका, संस्थानों को ऋण सहायता, माइक्रों वित्त गतिविधी आदि प्रमुख बिंदुओ पर कार्य किया गया है जिसका माध्यम सहायक समंक है जिसमे विभिन्न रिसर्च पेपर, आर्टिकल्स, नाबार्ड रिपोर्ट आदि के श्रोत का प्रयोग किया गया है।